7 मिनट 57 सेकेंड चला देवीधुरा बग्वाल, 4 दर्जन से अधिक घायल

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(चंपावत) रक्षाबंधन पर रविवार को मां बाराही के खोलीखांड़ मैदान में बग्वाल (पत्थर युद्ध) मात्र 7 मिनट 57 सेकेंड चला। आपको बतादें कि इसमें कुल 250 लोग घायल हुए हैं। बारिश होने के बावजूद खोलीखाड़ दुर्वाचौड़ मैदान रणबांकुरों से खचाखच भरा हुआ नजर आया। इस युद्ध का लुत्फ उठाने के लिए देश-विदेश से भी लोग यहां पहुंचे। इस दौरान सुरक्षा व्यवस्था के लिए भारी संख्या में पुलिस व पीएसी के जवानों की तैनात थी।

झमाझम बारिश के बीच चारों खामों के रणबांकुरों ने बग्वाल पूरे जोश के साथ खेला। इस दौरान उन्होंने एक दूसरे पर जमकर फल और फूल बरसाए। हालांकि, कुछ लोगों ने पत्थरों का भी इस्तेमाल। जिससे चार दर्जन से अधिक लोग घायल हो गए हैं लेकिन किसी को गंभीर चोटें नहीं लगी हैं। बग्वाल देखने के लिए केंद्रीय कपड़ा मंत्री अजय टम्टा व राज्य मंत्री धन सिंह रावत भी पहुंचे थे।

बग्वाल देखने के लिए चंंपावत ही नहीं बल्कि आसपास के जिलों के तमाम लोग पहुंचे। दोपहर करीब सवा डेढ़ बजे से रणबांकुरे खोलीखांड़ दुबाचौड़ मैदान में जुटना शुरू हो गए। सबसे पहले चम्याल खाम गंगा सिंह चम्याल के नेतृत्व में मैदान में पहुंचे। इसके बाद बालिग खाम, लमगड़िया खम व गहरवाल खाम के वीर मैदान में पहुंचे। सभी ने मां बाराही के जयकारों के साथ मंदिर व मैदान की परिक्रमा की। बग्वाल खेलने वालों के साथ ही मेला देख रहे लोग भी रोमांच से सराबोर दिखे।

बगवाल 2:38 पर शुरू हुई और 2:46 पर समाप्त हुई। इस दौरान आसमान में फल व पत्थर ही दिखाई दे रहे थे। इस दौरान हुए रणबांकुरों को मंदिर परिसर में बने चिकित्सा कक्ष में सीएमओ डा. आरपी खंडूरी के नेतृत्व में स्वास्थ्य विभाग की टीम ने उपचार किया। मेले के दौरान देवीधुरा की सड़कों में पांव रखने को जगह नहीं थी। हालांकि इस बार बारिश के कारण भीड़ कम रही। यातायात व्यवस्था बनाने के लिए पुलिस ने करीब आधा किमी पहले ही वाहन रोक दिए थे। कानून व्यवस्था के लिए जिले भर की पुलिस लगाई गई थी।

क्या है देवीधुरा बग्वाल मेला 

दरअसल, बग्वाल युद्ध चार राजपूत खामों यानी वर्गों से जुड़ा हुआ है। जिसे अपने-अपने खामों के रणबांकुरों के साथ खेला जाता है। इन राजपूत खामों के नाम हैं गहरवाल, लमगड़िया, वलकिया और चम्याल। यह युद्ध पूर्णमासी के दिन खेला जाता है। यह मेला अपने पत्थरमार युद्ध के लिए प्रसिद्ध है, जिसे स्थानीय भाषा में ‘बग्वाल’ कहा जाता है। पहले यह युद्ध सिर्फ पत्थरों से खेला जाता था, लेकिन बदलते वक्त के साथ इसे खेलने की प्रक्रिया में भी थोड़ा सा बदलाव हुआ है। अब पत्थरों की जगह फलों का इस्तेमाल किया जाने लगा है।

बग्वाल खेलने के लिए पहले से ही नाशपाती फल का भंडारण कर लिया गया। जिन्हें रविवार को बग्वाल के समय रणबांकुरों को बांटा गया। इसी नाशपाती से रणबांकुरों ने एक दूसरे के साथ युद्ध कर इस परंपरा को कायम रखा।