EXCLUSIVE: शास्त्रीय संगीत में बढ़ रहा युवाओं का रुझान : मलिक बंधु

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देहरादून के वर्ल्ड इंटीग्रीटि सेंटर (डब्लूआईसी) मे विकेंड पर कुछ अलग और संस्कृतिक रहा। शुक्रवार की शाम डब्लूआईसी में मलिक बंधुओं ने समां बाधां । साल 2015 से डब्लूआईसी से जुड़े होने के साथ मलिक बंधुओं ने अपना चौथा कार्यक्रम शुक्रवार को किया।

जहां देहरादून में एक तरफ छट्टियों का माहौल था वहीं दूसरी अोर शहर में सांस्कृति संध्या की धूम थी। 9वें पंडित विदुर मलिक संगीत समारोह में मलिक बंधु प्रशांत और निशांत मलिक ने लोगों से अपने संगीत के ज़रिए अलग ही तरह का रिश्ता बनाया।

इस दौरान मलिक बंधुओं से हुई बातचीत के कुछ अंश –

  • सवाल- देहरादून में कार्यक्रम करने का फैसला क्यों किया?
  • जवाब-  देहरादून में कार्यक्रम का अनुभव हमेशा से उम्दा रहा है। यह एक संयोग ही था कि आज से तीन साल पहले हमें डब्लूआईसी देहरादून में प्रस्तुति के लिए बुलाया गया और उसके बाद यह एक रुटिन बन गया कि हम पिछले 3 साल से यहां अपनी प्रस्तुति दे रहे हैं। ध्रुपद गायन शैली को लोगों तक पहुंचाना चाहते हैं और युवाओं को इस शैली से जोड़ना चाहते हैं ताकि यह परंपरा सालों साल चलती रहे। इन कार्यक्रमों के जरिए हम लोगों से सीधे संगीत के माध्यम से जुड़ते हैं और भारत की पुरानी संस्कृति को तरोताज़ा रखने का प्रयास करते हैं।
  • सवाल – किस उम्र से संगीत की ट्रेनिंग की शुरुआत हुई?
  • जवाब– हम अपने आपको सौभाग्यशाली मानते है कि ऐसे परिवार में हमारा जन्म हुआ जहां हम प्राकृतिक कला से नवाज़े गए।हालांकि घर में शास्त्रीय संगीत का माहौल काफी पहले से था तो हमारी ट्रेनिंग  लगभग पांच साल से ही शुरु हो गई, और 11 साल की उम्र से हम अपने पिता पंडित विदुर मलिक के साथ स्टेज पर परफ़ॉर्मेंस देने लगे। हमारे दादा का गुरुकुल जो वृंदावन में श्री चैतंन्य प्रेम कला संस्थान के नाम से स्थित था वहां हमें संगीत की प्रेरणा मिली।हम दोनों भाईयों ने म्यूजिक में डिग्री ली है जहां प्रशांत म्यूजिक में पीएचडी हैं वहीं निशांत ने एसआरएफ किया है।
  • सवाल– परिवार में संगीत का बैकग्राउंड होने की वजह कभी भी किसी तरह की तुलना का सामना करना पड़ा?
  • जवाब–  जब आप एक ऐसे परिवार से संबंध रखते हैं जहां कई पीढ़ी संगीत को समर्पित हो तो तुलना तो होती ही है।साथ ही एक जिम्मेदारी होती है कि आप पंडित विदुर मलिक के बेटे हो जिनसे गलती की उम्मीद नहीं की जाती। अपने पिता के नाम को उतनी ही जिम्मेदारी के साथ आगे बढ़ाना आसान नहीं है लेकिन बहुत ही कड़ी मेहनत और समझदारी से हम यहा काम सालों से कर रहे हैं।
  • सवाल– क्या आज का युवा वर्ग शास्त्रीय संगीत से जुड़ाव महसूस करता है?
  • जवाब– पहले से आज का युवा कहीं ज्यादा अपने देश और शास्त्रीय संगीत के प्रति जुड़ाव महसूस करता है।आज का युवा अपने पुरानी परंपरा को संजोने में लगे है उस नज़र से आजकल युवाओं में शास्त्रीय संगीत को सीखने की होड़ लगी है।
  • सवाल– क्या प्रस्तुति देते हुए आप अपने श्रोताओं से कुछ उम्मीद रखते हैं?
  • जवाब– प्रशांत कहते है कि यह सिर्फ मेरे लिए नहीं बल्कि सभी कलाकार के लिए है, कि कोई भी कलाकार अपनी प्रस्तुति में अपना सौ प्रतिशत देता है, बिना यह सोचे की आपका श्रोता आपको किस तरह से देख रहा है, हालांकि यह जरुर होता है एक कलाकार को साफ पता चल जाता है कि कौन उनके साथ जुड़ाव महसूस कर रहा है और कौन नहीं। प्रस्तुति देते वक्त हमारे दिमाग में केवल एक बात होती है कि कार्यक्रम में मौजूद सभी दर्शकों के लिए यह परफॉर्मेंस एक यादगार लम्हा बन जाए।

यह युवा जोड़ी मानती है कि जिस तरह से उनके परिवार की 13 पीढ़ी 500 सालों से इस परंपरा के साथ बढ़ रहे हैं, आगे भी यह परंपरा चलती रहेगी। तानसेन के परिवार से संबंध रखने वाला यह परिवार पीढ़ी दर पीढ़ी ध्रुपद गायन शैली को आगे बढ़ाने और देश के कोने-कोन में इस परंपरा को आगे बढ़ाने में प्रयासरत है। वो मानते हैं कि शो करने के लिए वह अलग-अलग देश और शहर में जाते है लेकिन दून के डब्लूआईसी जिस तरह भारतीय संस्कृति,शास्त्रीय संगीत और नृत्य के लिए काम कर रहा है आशा है वैसे और भी लोग आए और शास्त्रीय परंपरा को तवज्जों दें।