नीलकंठ महादेव के दर्शन मात्र से पूरी होती हैं सभी मन्नतें

महाशिवरात्रि के पावन अवसर पर नीलकंठ महादेव के दर्शन के लिए लगातार देश के कोने -कोने से शिव भक्त अपने अराध्य से मिलने नीलकंठ धाम पहुचने लगे हैँ।पहाड़ ओर जंगल के बीच बसे इस स्थान पर भगवान शिव खुद विराजमान है। पौराणिक मान्यता है की यही वो स्थान है जहा भगवान शिव ने समुद्र मंथन में निकले विष को अपने कंठ में धारण कर तपस्या की थी। ज़हर के प्रभाव से महादेव का कंठ नीला पड़ गया था और वो नीलकंठ महादेव कहलाये थे।मणि कूट  पर्वत के शीर्ष पर स्थित है भगवान् शिव का पौराणिक नीलकंठ धाम जहां सावन के महीने मे बड़ी संख्या मे शिव भक्त कावड़ लेकर जलाभिषेक के लिए पहुचते है।मान्यता है यहाँ पर भगवान शिव ने समुद्र मंथन मे निकले विष से धरती को बचाने के लिए विष को अपने कंठ मे धारण कर तपस्या की थी। विष की तेज़ जलन से भोलेनाथ को इस स्थान पर काफी शांति मिली थी देवताओ के आग्रह पर इस स्थान पर भोलेनाथ ने शिवलिंग की उत्पति की तब से देव ओर मानव यहाँ आराधना कर रहे है।
नीलकंठ महादेव की कावड़ यात्रा के लिए  शिव भक्तो मे नया जोश ओर उमंग उठने लगती है ओर अपने क्षेत्र से बड़ी संख्या मे कावड़ लेकर यात्रा पर निकल पड़ते है। इनका पहला पड़ाव होता है हरिद्वार जंहा हरकी पौड़ी पर स्नान करके ये आगे ऋषीकेश पहुचते है। ऋषीकेश मे स्वर्गाश्रम  से शुरु होती है नीलकंठ महादेव की यात्रा जो पैदल मार्ग से 12 किमी के राजा जी पार्क के घने जंगलो से होकर गुजरती है। सड़क मार्ग से ये रास्ता लगभग 24 किमी पर पड़ता है , इस यात्रा मे पश्चिमी उत्तर प्रदेश,हरियाणा,राजस्थान ओर पंजाब से लाखों की संख्या मे श्रद्धालु नीलकंठ महादेव पर जल चढाने के लिए आते हैं और भगवान शिव इनकी मन्नतो को पूरा कर देते हैं। यू तो उत्तराखंड के कण-कण मे भगवान शिव  का वास है,हिमालय शिव परिवार का वास स्थान है। यहाँ की यात्रा ओर यहाँ के दर्शन मात्र से भक्तो के सभी दुःख दूर हो जाते है।नीलकंठ महादेव अपने सभी भक्तो की सभी मनोकामनाए पूरा कर देते है।यही कारण है यहाँ साल भर बड़ी संख्या में श्रद्धालु देश के कोने -कोने से अपने आराध्य नीलकंठ महादेव  दर्शनों लिए मणिकूट पर्वत पहुचते हैं।