नालों से एक वर्ष में 3630 क्यूबिक मीटर मलबा नैनी झील में आया

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    नैनी झील

    कमजोर भूस्थानिक परिस्थितियों वाली सरोवर नगरी नैनीताल में होने वाले भूस्खलनों को रोकने के लिए यहां स्थित विश्व प्रसिद्ध नैनी झील के जलागम क्षेत्र के पूरे पानी को व्यवस्थित तरीके से नीचे लाने के लिए अंग्रेजों ने नाला व्यवस्था बनाई थी।

    वर्ष 1880 में नगर में हुए सबसे बड़े 143 लोगों की जान लेने वाले भूस्खलन के बाद 62 नालों का निर्माण किया गया था। इनमें से 59 नाले आज भी मौजूद हैं। कुल 39 किमी लंबाई के इन नालों में से 44 नाले नैनी झील के जलागम क्षेत्र में, 7 सूखाताल के जलागम क्षेत्र में, 2 बलियानाला के जलागम क्षेत्र में और 6 बिड़ला पहाड़ी से पीछे शिप्रा नदी की ओर स्थित हैं। इन नालों को नैनी झील की धमनियां भी कहा जाता है।

    लेकिन यह नाले नैनी झील में पानी लाने की अपनी जिम्मेदारी से इतर नैनी झील में मलबा और अन्य गंदगी लाने का माध्यम भी बन गए हैं। सिंचाई विभाग के अनुसार बीते एक वर्ष में इन नालों से 726 ट्रक यानी प्रति ट्रक औसतन 5 क्यूबिक मीटर के हिसाब से कुल 3630 क्यूबिक मीटर निष्प्रयोज्य निर्माण सामग्री के साथ मिश्रित रेता, बजरी, मिट्टी आदि निकाली गई है।

    इस मलबे को पिछले वर्षों में नहीं निकाला गया। इस कारण नैनी झील की गहराई लगातार घटती रही है। वर्ष 2018 में सिंचाई विभाग की ओर से अधिकृत नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हाइड्रोलॉजी देहरादून ने झील की गहराई का परीक्षण किया था। उनके आंकड़ों के अनुसार वर्ष 2018 में झील की गहराई 16.90 मीटर मिली, जबकि यह 1989 में 18.52 मीटर थी। यानी तीन दशक में झील की औसत गहराई में 1.62 मीटर की कमी आई। अब इस समस्या के समाधान के लिए नालों से लगातार मलबा निकालने का कार्य किया जा रहा है।