कोरोना लॉकडाउन बना उत्तराखंड के जंगलों के लिये वरदान

जंगलों

आम दिनों में फ़रवरी महीने के अंत से ही रात में राज्य के पहाड़ों पर जंगलों में लगी आग के नज़ारे आम बात हो जाती है। और दोपहर के समय आसमान में धुएँ के बादल उठते देखे जा सकते हैं। यह सब हमें साफ़ करती थी कि हमारे जंगलों का एक बड़ा हिस्सा आग के हवाले हो रहा है। गर्म मौसम, तेज़ गर्म हवाऐं, और चढ़ता पारा इस आग में घी का काम करता है।

2016 की गर्मियों में उत्तराखंड ने जंगलों में आग का ऐसा तांडव देखा था जिसने अपनी चपेट में आने वाली हर चीज को लील लिया था। इस दौरान खासतौर पर कुमाऊँ मंडल के जंगलों को ख़ासा नुकासन पहुँचा था। इसी तरह साल 2018 में राज्य के जंगलों के 4,480 हेक्टोयर इलाक़े को 2,150 आग की घटनाओं से नुकासन पहुँचा था।
2019 में भी अप्रैल के पहले हफ़्ते तक ही, एक दर्जन से ज़्यादा आग की घटनाओं ने गढ़वाल और कुमाऊँ के जंगलों के क़रीब 15 हेक्टेयर इलाक़े को नुक़सान पहुँचाया था। यहाँ यह बताना ज़रूरी है कि इन आग की घटनाओं से न केवल पर्यावरण और जंगलों को नुकासन होता है बल्कि राज्य की अर्थव्यवस्था को भी नुकासन पहुँचता है।

लेकिन इस साल कहानी कुछ अलग रही है। आज की तरीख तक, राज्य में महज़ 10 हेक्टेयर जंगल में आग की घटनाओं सामने आई हैं और इससे राज्य को क़रीब 24 हज़ार रुपये का नुक़सान हुआ है। उत्तराखंड के पीसीसीएफ़, जयराज ने न्यूजपोस्ट को बताया कि, “अगर हम पिछले सालो को देखकर बात करें तो यह आँकड़ा हज़ारों एकड़ का होता। मौसम और कोरोना लॉकडाउन ने जंगलों में लगने वाली आग की घटनाओं को कापी क़ाबू में रखा है और पर्यावरण को राहत दी है। इसमें 75-80% श्रेय मौसम को जाता है, हमारे यहाँ क़रीब क़रीब हर हफ़्ता बारिश हुई है। बाक़ी का श्रेय आप कोरोना लॉकडाउन को दे सकते हैं, क्योंकि पहाड़ों पर होने वाली जंगलों में आग की ज़्यादातर घटनाओं मानव निर्मित होती हैं।”

जयराज आश्वस्त करते हुए कहते हैं कि, “हालात बेहतर हैं और क़ाबू में हैं। हमने फ़ायर लाइन जगह पर बना दी हैं और अगर मौसम इस तरह रहा तो चिंता की कोई बात नहीं होगी।”

उत्तराखंड के 3,400 वर्ग किमी के जंगलों के लिये आग हमेशा से ही परेशानी और ख़तरे का सबब रही है। कोरोना और उसके बाद हुए लॉकाउन ने पानी की स्रोतों और जानवरों को जीवन की नई उमंग दी है। वहीं, हमारे जंगलों को भी इस बार सालाना होने वाली “आग से मौत” के बचाव मिला है।