जीत कर भी हार न जाए आसिया

आशंका सच साबित हुई। इमरान खान सरकार ने कट्टरपंथियों के आगे घुटने टेक दिए। ईशनिन्दा के झूठे मामले में पाकिस्तानी सुप्रीम कोर्ट द्वारा बरी किए जाने के बाद भी आसिया बीबी का जेल से बाहर आना फिलहाल संभव नहीं है। उसे एक्जिट कंट्रोल लिस्ट में डाल दिया गया है। आसिया के वकील सैफुल मालूक खतरा देख विदेश भाग गए हैं। मालूक ने कहा है कि यदि आसिया के मामले में रीव्यू पिटीशन दाखिल की जाती है तो वह अपने मुव्वकिल के पक्ष अदालत में पेश होने आ सकते हैं, बशर्ते संघीय सरकार सैन्य सुरक्षा दे। पाकिस्तान में मानवाधिकारों की आवाज उठाने वालों की संख्या मुट्ठी भर है। उन पर काफी दबाव है लेकिन फिर भी वो आसिया के पक्ष खड़े हैं। उनका कहना है कि कट्टरपंथियों से डर कर इमरान सरकार ने आसिया के डेथ वारंट पर हस्ताक्षर कर दिए। अब जेल में ही आसिया की हत्या का खतरा है। पहले भी जेल में दो कैदियों ने उसकी हत्या का प्रयास किया था। बाद में उसे अलग कोठरी में रखा गया। खतरे का अहसास आसिया को भी है। सुप्रीम कोर्ट का फैसला अपने पक्ष में आते ही 47 साल की इस मजदूरनी ने पाकिस्तान छोड़ने की अपनी मंशा अपनों से व्यक्त कीथी। कहना मुश्किल है कि आसिया कभी पाकिस्तान से बाहर निकल पाएगी या नहीं। नवम्बर माह के शुरुआती तीन दिनों में पाकिस्तान में जो खौफनाक मंजर दिखाई दिया, वह दुनिया के कान खड़े कर देने वाला रहा। लगभग दो-तिहाई पाकिस्तान, खासकर दस शहरों, में उन्मादी इस्लामी कट्टरपंथियों ने जमकर उत्पात मचाया। पूरी तरह अराजकता दिखाई दे रही थी। भडक़ाऊ भाषण देते मुल्ला, उनकी आवाज पर नारेबाजी करती हजारों लोगों की भीड़, उग्र प्रदर्शन, आगजनी और बेखौफ तोडफ़ोड़ देखकर कोई नहीं विश्वास कर सकता था कि पाकिस्तान में कानून का शासन जैसी कोई चीज है। धार्मिक नेता खुले आम उन्मादी भीड़ को उकसा रहे थे। सुप्रीम कोर्ट के जजों की हत्या करने की धमकी दी जा रही थी। अंगरक्षकों से बगावत करने को कहा गया। सेना प्रमुख और प्रधानमंत्री को दुरूस्त कर देने जैसी बातें कहीं गईं। ये सब उन्हीं लोगों का काम था जिनके समर्थन से इमरान प्रधानमंत्री बने हैं।

पाकिस्तान के ताजा नजारों पर कम से कम प्रत्येक पढ़े-लिखे और परिपक्व भारतीय के मन में थोड़ी-बहुत हलचल अवश्य हुई होगी । तय मानें, अधिकतर ने सोचा होगा,चलो इन जाहिलों से विभाजन के समय ही पिण्ड छूट गया। 1947 के बंटवारे के लिए अनेक कारण गिनाये जाते हैं। कुछ नेताओं को दोषी ठहराया जाता है, लेकिन पाकिस्तान जिस दिशा में जा रहा है, उसको देखकर लगता है, जो हुआ अच्छा हुआ। पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था चौपट हो चुकी है, कर्ज का भारी बोझ है, दूसरे देशों से भीख मांग कर काम चलाया जा रहा है। इन समस्याओं को समझा जा सकता है। सुधार की उम्मीद से दूसरे देश उसकी मदद के लिए सोच सकते हैं लेकिन पाकिस्तान का आतंरिक चरित्र और कट्टरपंथी तांडव देखकर कौन सा देश अपने हाथ और जेब जलाना चाहेगा? तीन दिनों तक वहां जो चला, वह इस बात का प्रमाण है कि पाकिस्तान में कानून के शासन जैसी कोई बात नहीं रह गई। प्रत्यक्ष प्रमाण कट्टरपंथी नेताओं और उनके धर्मान्ध समर्थकों ने दे दिया। जजों की हत्या की धमकी सिर्फ इसलिए दी गई क्यों कि सुनाया गया फैसला धर्मान्ध लोगों पसंद नहीं आया। कहा जाता है कि पाकिस्तान का बच्चा-बच्चा कट्टरपंथी बना दिया गया है। हालांकि लोगों को अपनी मर्जी से धर्म मानने की छूट है, परन्तु दूसरे फिकरों और धार्मिक अल्पसंख्यकों पर ईशनिन्दा कानून की तलवार लटकती रहती है। उनका जीवन बहुत कठिन हो चुका है। हर दस में से आठ पाकिस्तानी धर्मान्ध है। हर तीसरा व्यक्ति हिंसक प्रवृत्ति का है। अब बात करें कि कैसे पाकिस्तान में धार्मिक कट्टरपन इतना बढ़ गया? वहां ईशनिन्दा कानून कब और कौन लाया? गौरतलब है कि 1860 में ब्रिटिश शासन ने धर्म से जुड़े अपराधों के लिए यह कानून बनाया था। इसका उद्देश्य धार्मिक हिंसा को रोकना था। लेकिन धर्म के नाम पर बनाये गए पाकिस्तान में 1982 में फौजी तानाशाह जनरल जिया उल हक ने पाकिस्तान पीनल को में 295-बी जोडक़र ईशनिन्दा का कानून बना दिया। दरअसल, पाकिस्तान के भटकने और और बर्बादी की शुरुआत जनरल जिया के समय हो गई थी। ईशनिन्दा का कानून बनाने के पीछे मकसद कठमुल्लों को खुश करना था। जिया उल हक ने दूसरी बड़ी गलती सेना और पुलिस को धार्मिक उन्मादी बनाकर की थी। इन बदलावों से धार्मिक कट्टरता का समूचे पाकिस्तान में फैलाव हो गया। वहां शिक्षित वर्ग में व्याप्त कट्टरपन के लिए एक ही उदाहरण काफी है। आसिया मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के विरोध में सैंकड़ों वकीलों ने अपने काले कोट जला डाले। आखिर, ऐसी जगह आसिया कब तक सुरक्षित रह पाएगी? हर दस में से आठ लोग उसे घृणा की नजर से देख रहे हगैं।


ईशनिन्दा का मामला 2010 का है। आसिया का अपराध यह था कि उसने गलती से कुएं के पास मुस्लिम महिलाओं के लिए रखे गिलास से पानी पी लिया। इस पर मुस्लिम महिलाएं भडक़ उठीं। उनका कहना था कि गिलास अशुद्ध हो गया है। आसिया ने उन्हें समझाने का प्रयास किया और इसी दौरान वह पैगम्बर मोहम्मद और ईसा मसीह की तुलना कर बैठी। विवाद बढ़ गया। आसिया पर ईशनिन्दा कानून के तहत मामला कायम करवा दिया गया। शेखुपुरा जिला अदालत ने आसिया बीबी को दोषी मानते हुए फांसी की सजा सुनाई थी। हाईकोर्ट ने आसिया की सजा बरकरार रखी। सुप्रीम कोर्ट ने 2015 में सजा के अमल पर रोक लगा दी थी। सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस मियां साकिब निसार का कहना है कि आसिया पर लगे आरोप साबित नहीं होते हैं। ऐसे में उसे सजा कैसे दी जा सकती है। फैसले के विरोध में हो रहे प्रदर्शनों पर उनकी टिप्पणी थी, क्या हम सिर्फ मुसलमानों के जज हैं? जस्टिस निसार और उनके साथी जजों की प्रशंसा की जानी चाहिए। अंत में एक सवाल मन को कुरेद रहा है। क्या पाकिस्तानियों को नहीं मालूम कि उनका देश एक ऐसी दिशा की ओर बढ़ रहा है जहां सिर्फ तबाही है?