परंपराः मसूरी में अलाव की गर्मी से जुड़ते लोगों के दिल

7000 फीट की ऊंचाई पर, जब पारा माइनस में चला जाता है, तब मसूरी नगर निगम बोर्ड अपने नागरिकों को मुफ्त अलाव बांटकर उन्हें गर्म रखने की परंपरा जारी रखता है। दिसंबर से लेकर मार्च के अंत तक, भले ही कुछ घंटों के लिए, अपने जाने पहचाने और मशहूर जगहों पर धधकते अलाव के आसपास सर्दियों में शहर के निवासी गर्म रहते हैं।

शाम लगभग 4:30 बजे नगरपालिका बोर्ड ऑफिस के बाहर लकड़ी से लदे एक पिकअप ट्रक रोजाना निकलता है। शहर के बीच से अपना रास्ता बनाते हुए, ट्रक लगभग 12 किमी  का सफर तय करता है, जो शहर के एक छोर से दूसरे छोर तक 25 क्विंटल अग्नि-लकड़ी (अलाव) बांटता है।

देश में दूसरा सबसे पुराना नगरपालिका बोर्ड, मसूरी नगरपालिका बोर्ड के नवनिर्वाचित अध्यक्ष अनुज गुप्ता हमें बताते हैं, “यह मसूरी की परंपरा रही है कि सर्दियों में, हम सभी को मुफ्त अलाव लकड़ी उपलब्ध कराते हैं। शुरुआत में एक दर्जन स्थानों से अब हम बत्तीस स्थानों पर लकड़ी बांटते हैं। ताकि जो लोग देर शाम तक काम कर रहे हैं या व्यवसाय कर रहे हैं वे कम से कम कुछ घंटों के लिए खुद को गर्म रख सकें।

नगरपालिका बोर्ड के व्यक्तिगत फंड से सर्दियों में जलाने वाली लकड़ी या अलाव दिया जाता है। पिक-अप लकड़ी को सड़कों पर उतारता है जहाँ दुकानदार और मजदूर लकड़ी को इकट्ठा कर अलाव जलाते हैं जो चुभती ठंड में लोगों को कुछ देर आराम देने का काम करता है।

अधिकांश के लिए, यह अलाव उन्हें गर्म रखने का आखरी तरीका हैं। दिहाड़ी मजदूर का काम करने वाले मनचंद्र लंढौर बाजार में अलाव के आसपास इकट्ठा उन सभी के लिए बोलते हैं, “सर्दियों के दौरान, यह अलाव हमें गर्म रखती है। न केवल मेरे जैसे मजदूर, बल्कि पर्यटक भी आग का आनंद लेने के लिए तैयार रहते हैं।” बुजुर्ग निवासी भगवान सिंह घनसोला हमे बताते हैं कि, “सालों से इस अलाव ने कई लोगों को गर्म रखा है। हम अलाव के पास एक-दूसरे को कहानियां सुनाते  हैं, मूंगफली खाते हैं और जब आग बुझने लगती है, तो हम आग की गर्मी लिए बहुत ही आराम से अपने घरों को लौट जाते हैं।

इस तरह की परंपराएं एक एहसास कराती हैं कि सर्दियों में अलाव की गर्मी, लोगों के दिलों में एक अपनेपन और गर्मी का एहसास कराती है, जो अलाव के आसपास इकट्ठे होते हैं, भले ही वह थोड़े समय के लिए ही क्यों न हो।