गिद्धों दिखने से वन विभाग में खुशी की लहर

0
803

पौड़ी,  कड़ाके की इस ठंड में प्रवासी पक्षियों के साथ ही गिद्धों ने भी कालागढ़ की ओर अपना रुख किया है करीब 25 से 30 के झुंड में गिद्ध कालागढ़ केंद्रीय कालोनी के सूखा स्रोत में बैठे हुए दिखाई दे रहे है जिन्हें देखने के लिए सूखा स्रोत पर लोगों का तांता लगा रहता है ।

प्रकृति का सफाईकर्मी कहा जाने वाला गिद्ध दूषित पर्यावरण व मवेशियों में इस्तेमाल डाइक्लोफोनिक दवा के चलते इतनी तेजी से विलुप्त हो रहा है कि पूरे देश के वन्यजीव प्रेमी व वन्यजीव संरक्षण संस्थाए इसको लेकर चिंतित है । परन्तु हर वर्ष की भांति इस वर्ष भी व्हाइट रम्पड गिद्धों का एक बड़ा झुंड कालागढ़ में नजर आ रहा है । इस झुंड में करीब 25 से 30 गिद्ध है जो दिनभर बादलों में तैरने के बाद सूखा स्रोत में बैठ जाते है जिससे स्थानीय नागरिक इनकी तरफ आकर्षित हो रहे है व कालागढ़ वन विभाग में भी खुशी की लहर है।

गिद्धों की इस प्रजाति को व्हाइट रम्पड वल्चर कहा जाता है भारतीय गिद्धों की यह सबसे बड़ी प्रजाति है इनके साथ ही इजिप्शन वल्चर का भी एक जोड़ा सूखा स्रोत में दिखाई दे रहा है। ज्ञात हो गिद्ध मुर्दाखोर होते है जो मृत जीव को खाकर अपना पेट भरते है जिनमे किसानों के मवेशी भी शामिल है परंतु ज्यादा दुग्ध उत्पादन व मवेशियों में बीमारी ना फैले इस कारण किसानों ने अपने मवेशियों को डाइक्लोफोनिक नामक एक इंजेक्शन देना शुरू किया इसका नतीजा हुआ की यह इंजेक्शन गिद्धों के लिए काल बनकर आया। डाइक्लोफोनिक इंजेक्शन लगे किसी भी मृत मवेशी को गिद्धों ने खाया तो इस संक्रमित मांस को खाते ही गिद्धों की किडनी फेल होनी शुरू हो गयी और वो तुरन्त ही मौत की गोद मे समा गये। डाइक्लोफोनिक इंजेक्शन के कारण इनकी संख्या में बहुत भारी गिरावट आई। कुछ समय बाद कई वन्यजीव संस्थाओं ने इस इंजेक्शन पर रोक लगाने की मांग की और इस इंजेक्शन के कारण गिद्धों पर हो रहे दुष्प्रभाव को समझते हुए भारत सरकार ने इस पर प्रतिबंध भी लगा दिया ।जिसका परिणाम संतोषजनक रहा व भारत मे गिद्धों की संख्या में धीरे धीरे बढ़ोतरी होनी शुरू हुई।

कालागढ़ में दिख रहे गिद्धों का यह झुंड इस बात का संदेश है कि फिर से वापसी कर रहा है। 25 से 30 की संख्या में दिख रहे इस बड़े झुंड से कालागढ़ वन विभाग बेहद खुश है जिस पर उप प्रभागीय वनाधिकारी आर के तिवारी ने बताया कि यह बेहद सुखद अनुभव है कॉर्बेट में चल रही महाशीर कॉन्सरवेंसी जैसी संस्थाओं का भी इसमे बड़ा योगदान है । कालागढ़ में भी इनके संरक्षण के लिए जरूरी कदम उठाए जाएंगे ।