प्यासा है गंगा-यमुना का मायका

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देहरादून, गंगा-यमुना का मायका (उत्तराखंड) प्यासा है। पहाड़ में एक कहावत है कि पहाड़ का पानी और जवानी यहां के काम नहीं आते लेकिन सरकारें इसे बदलने को आतुर है। उत्तराखंड में नदियों, नालों, जलस्रोतों की संख्या करीब एक हजार से अधिक हैं, जो यहां से निकलकर सुदूर मैदानी इलाकों को सिंचती हैं, वहीं, प्रशासन की अनदेखी और व्याप्त भ्रटाचार की वजह से राज्य के कई जिलों में जल संकट गहरा गया है। पर्वतीय राज्य में गर्मियां आते ही लोगों को पानी के लिए दर-ब-दर भटकना पड़ रहा है।

साल दर साल जनसंख्या में बढ़ोत्तरी हो रही है लेकिन प्रति व्यक्ति प्रति लीटर जल में कमी होती जा रही है। इसका कारण कुप्रबंधन तथा अव्यवस्था है। पूरे प्रदेश में स्थिति प्रति वर्ष एक जैसी ही होती है। इस बार भी कोई अंतर आता नहीं दिख रहा है। गत दिनों एक चुनावी सभा में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कहा था कि वे पहाड़ के पानी और जवानी दोनों को पहाड़ के काम आने की योजनाएं क्रियान्वित करेंगे।

पेयजल मंत्री के इलाके में पानी की किल्लत
पूरे प्रदेश की स्थिति देखी जाए तो कुमाऊं के नाले और जलधारा विश्व प्रसिद्ध थे। सांस्कृतिक नगरी अल्मोड़ा मुख्यालय में लगभग सभी इलाकों में पानी की किल्लत है और इसकी वजह यह है कि पिछले 30 साल से पुरानी पाइप लाइनों को बदला नहीं गया है, जबकि कुमाऊं में ही पेयजल मंत्री प्रकाश पंत का कार्यक्षेत्र है, उसके बाद भी वहां पानी की कमी है। इसके लिए प्रकाश पंत ने जोरदार अभियान चलाया तथा पेयजल की किल्लत को दूर करने का काफी प्रयास किया है लेकिन जनसंख्या घनत्व पर यह प्रभाव आज भी नाकाफी है।

अधिकारियों की लापरवाही और भ्रष्टाचार प्रमुख कारण
टिहरी झील से सटे क्षेत्रों में पेयजल की भारी कमी है। इसका कारण प्राकृतिक जलस्त्रोतों का सूखना है। जल स्रोतों के सूखने के कारणों में वनों का लगातार कटान, मुनाफाखोरी के लिए पहाड़ों के कटान में बारूद का प्रयोग होना है। गढ़वाल का कोटद्वार क्षेत्र ऐसी ही स्थितियों से जूझ रहा है। कोटद्वार में भी दर्जनभर इलाकों में लोगों को पानी मयस्सर नहीं है।

आबादी के हिसाब से नाकाफी पानी के इंतजामात
अभियंता एस कुमार बताते हैं कि कोटद्वार में 20 साल से पुरानी पाइप लाइनों को बदला नहीं गया है। यह लाइनें 50 हजार आबादी का बोझ 5 हजार क्षमता की पाइप लाइन झेल रही हैं। पर्यटन नगरी मसूरी में पेयजल की भारी किल्लत है। गर्मियों में यह किल्लत और बढ़ जाती है। इसका कारण पर्यटकों का यहां आना है। आंकड़ों की माने तो गर्मी से निजात पाने हजारों की संख्या में पर्यटक यहां आते हैं। पर्यटकों के अलावा मसूरी वासियों के लिए 14 एमएलडी पानी जरूरत पड़ती है जबकि उन्हें मात्र 7.67 एमएलडी पानी ही मिल पा रहा है। इससे पानी की कमी का अंदाजा किया जा सकता है।

प्राकृतिक जल स्रोतों का दोहन
उत्तराखंड राज्य बनने के बाद से पानी की कमी बढ़ी हैं। राज्य बनने के बाद से तेज और अनियोजित निर्माण योजनाओं की वजह से पहाड़ के प्राकृतिक जल स्रोतों को बड़ा नुकसान हुआ है। स्थानीय निवासी भी प्राकृतिक जल स्रोतों के सरंक्षण के प्रति लापरवाह हुए हैं। ऐसे में पानी के गहराते संकट की वजह से आबादी का बोझ मैदानी इलाकों पर बढ़ रहा है और वहां भी जल संकट बढ़ रहा है।

राजधानी में गहराया जल संकट
देहरादून राजधानी में यहां कई मोहल्ले पेयजल की किल्लत से जूझ रहे हैं। इनमें चुक्खूवाला, खुडबूड़ा जैसे क्षेत्र भी शामिल हैं। अब तो देहरादून के बाहरी क्षेत्रों में भी पानी कमी होने लगी है। इसके कारण समस्या बढ़ रही है। महपौर सुनील उनियाल गामा का कहना है कि पेयजल की व्यवस्था अलग विभाग की जिम्मे है लेकिन महपौर होने के नाते वह जल समेत सभी सुव्यवस्थाओं का यथोचित प्रबंध कराने का प्रयास कर रहे हैं ताकि आम जनता को समस्या नहीं हो।