उत्तराखंड में बाघों की मौत पर हाईकोर्ट सख्त, पर क्या बच सकेंगे राज्य के बाघ?

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Image Courtesy: Puskar Basu from team Adventhrill.

उत्तराखंड के कॉर्बेट और राजाजी नेशनल पार्क की केवल देश में ही नहीं बल्कि विदेशों में अलग पहचान है। ऐसे में वन विभाग भी पार्क सहित जंगलों में बाघ, गुलदार, हाथी, हिरण समेत दूसरे जंगली जानवरों की देखरेख में कोई कमी नहीं छोड़ता। लेकिन हालिया सर्वे के मुताबिक राज्य में पिछले आठ साल में बाघों के मौत के आंकड़ों में बढ़ोतरी हुई है। रिपोर्ट के अनुसार, बीते आठ साल में अबतक कुल 82 बाघों की मौत हो चुकी है।

लेकिन इस मामले में और देरी ना करते हुए सितंबर में उत्तराखंड हाी कोर्ट ने राज्य में बाघों के शिकार के मामलों में केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) की जांच के आदेश दिए। उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने अभयारण्य में पिछले पांच साल में हुई बाघों की मौत और उनके शिकार में अधिकारियों की कथित संलिप्तता की सीबीआई जांच के आदेश दिये हैं।

क्या है हाईकोर्ट का आदेश

हाईकोर्ट ने अपने इस आदेश में ने सीबीआई से उत्तराखंड राज्य में शिकार के सभी मामलों में प्रारंभिक जांच करने को कहा और वन अधिकारी/अधिकारियों के सेवारत अधिकारी/अधिकारियों की जटिलता/भागीदारी/सहभागिता और संलयन का पता लगाने के लिए अनुरोध किया है। “अदालत ने सीबीआई से तीन महीने में एक प्रारंभिक रिपोर्ट जमा करने को कहा है। इतना हीं नहीं अदालत ने पुलिस को भी आदेश दिया है कि वो 3 माह के अंदर शिकारियों को पकड़े।

इसने एनटीसीए को 6 महीने के भीतर कॉर्बेट की दक्षिणी सीमा के साथ वन क्षेत्र में नुकसान का निर्धारण करने का आदेश दिया। अदालत ने कहा कि क्षेत्र में दो रिपोर्टों के आंकड़ों में बदलाव थे। कोर्ट ने उत्तराखंड पुलिस को तीन महीनों के अंदर शिकारियों को गिरफ्तार करने के लिए एक विशेष टीम का गठन करने का निर्देश दिया।

अदालत की नैनीताल खंडपीठ ने मार्च 2016 में हरिद्वार में पांच बाघों की खाल के जब्त होने के मामले में एनजीओ ऑपरेशन आई टाइगर इंडिया की याचिका की सुनवाई के बाद जांच का आदेश दिया था।जब्त हुए बाघ कॉर्बेट टाइगर रिजर्व और आसपास के क्षेत्रों से थे।इसके अलावा अदालत ने रिजर्व के अंदर ढिकाला जोन में कर्मशियल गाड़ियों के इस्तेमाल पर प्रतिबंध लगा दिया, जो बाघ के दृश्यों के कारण पर्यटकों के बीच काफी लोकप्रिय था।

जिम कॉर्बेट से उत्तराखंड को मिलने वाला राजस्व

हाई कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि केंद्र ने झिरना और बिजनानी रिजर्व के क्षेत्रों में 32 वाहनों की अनुमति दी है और कोर्ट का यह फैसला आगे भी जारी रहेगा।

अदालत ने 3 अगस्त को कॉर्बेट और राजाजी टाइगर रिजर्व में कर्मशियल वाहनों की संख्या 100 तक सीमित कर दी थी। बाद में 9 अगस्त को अदालत ने अपने आदेश में संशोधन किया और कहा कि कॉर्बेट के पांचवे ज़ोन और राजाजी टाइगर रिजर्व के एक जोन में 20 वाहनों की अनुमति होगी।

कॉर्बेट लगभग 240 बाघों का घर है और रिजर्व में दिन के दौरे के लिए 180 वाहनों की अनुमति है। रात भर रहने वाले पर्यटकों के लिए अतिरिक्त 25 वाहनों की अनुमति है। 3 लाख से अधिक पर्यटक सालाना कॉर्बेट टाइगर रिजर्व में जाते हैं जिससे पार्क 9 करोड़ रुपये से ज्यादा का राजस्व कमाता है। कॉर्बेट प्रबंधन के साथ लगभग 250 से भी अधिक वाहन मालिक रजिस्टर है ऐसे में वाहनों की संख्या कम करने से गाड़ी मालिकों को परेशानियो का सामना करना पड़ सकता है।

वहीं इस संबंध में प्रिंसिपल चीफ कंज़रवेटर ऑफ फॉरेस्ट जय राज ने कहा कि “स्थानीय लोगों की आजीविका ढ़िकाला और कॉर्बेट के अन्य क्षेत्रों में सवारी से जुड़ी हुई थी। हम कोर्ट से पुनर्विचार करने के लिए एक बार फिर संपर्क कर सकते हैं।

बीते दिनों अखिल भारतीय स्तर पर बाघों की गणना की गई थी। जिसमें देशभर के 50 बाघ आरक्षी क्षेत्रों में उत्तराखंड सबसे आगे बढ़ा है, हालांकि यहां भी शिकार हुआ है पर अन्य बाघ आरक्षित क्षेत्रों की तुलना में यहां बाघ ज्यादा पाए गए हैं। इस गणना में उत्तराखंड में 433 बाघ मिले हैं, जो अपने आप में बाघों के लिए ही नहीं वन्य पशु प्रेमियों के लिए भी खुशी की खबर है। उत्तराखंड बाघों के संरक्षण में कर्नाटक के बाद दूसरे स्थान पर आता है, लेकिन प्रदेश में बाघों के पूर्ण संरक्षण के बावजूद बाघों की मौतों का आंकड़ा बढ़ता जा रहा है, यह चौकाने वाली बात है।

  • साल 2010 से 2017 के बीच बाघों की मौत का ये आंकड़ा 82 तक पहुंच चुका है, जिसमें
  • साल 2011 में 18 और वर्ष 2015 में सर्वाधिक 13 बाघों की मौत हुई।
  • वहीं साल 2017 में 12 बाघों की मौत हुई।

जहां एक तरफ सरकार तमाम कोशिशों के बाद भी कॉर्बेट टाइगर रिर्जव में बाघों के शिकार व मरने की संख्या से परेशान हैं वहीं कुछ गैर सरकारी संस्था भी इस मुद्दे पर जम कर काम कर रहे है।ऐसे ही एक संस्था रुरल लिटिगेशन एंड एन्टाईटलमेंट केंद्र (Rural Litigation and Entitlement Kendra,RLEK) पिछले कई सालों से राज्य में अलग-अलग मुद्दों पर काम कर रही है।आर.एल.ई.के संस्था के चेयर पर्सन अवधाश कौशल नें टाईगर पोचिंग और हाईकोर्ट द्वारा सीबीआई को जांच देने के मामले में बातचीत में हमसे कहा कि “अगर हम पिछले पांच साल की बात करें तो 80 से भी ज्यादा बाघों की मौत हुई है जो की हमारे लिए चिंता का विषय है।जमीनी स्तर की इस समस्या का समाधान सीबीआई के हाथ में भी नहीं है।देखा जाए तो टाईगर रिर्जव के लिए अच्छा खासा बजट देती है लेकिन इस पैसे को किस तरह से खर्च किया जाता है यह मॉनिटर करने के लिए कोई नहीं है।टाईगर रिर्जव में पोचिंग से तो बाघ मरते ही हैं लेकिन कुछ बाघ बेहतर खान-पान की कमी से भूखे भी मरते हैं और उसकी जिम्मेदारी कोई नहीं लेता।अवधाश कौशल ने कहा कि सरकार को वन-गुर्जरों की मदद लेनी चाहिए जबकि सरकार इन्हीं को जंगलों से बाहर निकाल रही है।

गौरतलब है कि बीते दिनों बागेश्वर और अल्मोड़ा में नरभक्षी बाघों को मारने की परमिशन खुद सरकार ने दी।जानकारों का कहना है कि जहां एक तरफ ऐसा माना जाता है कि प्रोटेक्टेड क्षेत्र में बाघ सुरक्षित हैं वहीं बाघों को इन क्षेत्रों में ज्यादा नुकसान पहुंच रहा है और जंगलों से बाहर बाघ सुरक्षित है। इसका मतलब साफ है कि इन बाघों की देख-रेख में बड़े स्तर पर कोताही बरती जा रही है।

रामनगर को बाघों की राजधानी कहा जाता है। बाघों के कारण ही साल दर साल सरकार को करोड़ों राजस्व मिलता है। बाघों की सुरक्षा के नाम पर करोड़ों रुपये का बजट हर साल आता है लेकिन पिछले कुछ समय से बाघों की मौत ने रामनगर को सुर्खियों में ला दिया है। कभी आपसी संघर्ष में बाघ जान गंवा रहे हैं तो कभी संदिग्ध परिस्थितियों में बाघ के सड़े-गले शव बरामद हो रहे हैं। भले ही बाघों की मौत की वजह अलग-अलग हों लेकिन बाघों का लगातार मरना कई सवाल खड़े कर रहा है। हालांकि कॉर्बेट के अधिकारी बाघों की मौत एक इत्तफाक ही मानते हैं।

यह मामला सीबीआई और हाईकोर्ट के अधीन होने के कारण इस मामले में किसी भी सीनियर ऑफिसर ने कुछ भी कहने से मना किया है। बाघों की सुरक्षा का जिम्मा सीबीआई को सौंपना कितना कारगर होगा ये तो वक्त ही बता सकेगा। लेकिन इस मामले पर हई कोर्ट के एक्शन से ये साफ है कि बाघों की सुरक्षा पर कम से कम कोर्ट संजीदा है। हांलाकि बाघों की सही मायने में सुरक्षा और संरक्षण करने के लिये शासन, प्रशासन, वन विभाग और तमाम भागीदारों को मिलकर सही कदम उठाने पड़ेंगे वरना वे दिन दूर नही है जब बाघ किताबों और डॉक्यूमेंट्री फिल्मों का हिस्सा भर बन कर रह जायेंगे।