राज्य की स्वास्थ्य सेवाएं हो रही ‘बीमार’

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(देहरादून) अगर आप राज्य की बदहाल स्वास्थ्य सेवाओं की तस्वीर देखना चाहते हैं तो कहीं दूर जाने की जरूरत नहीं। राजधानी में ही दून मेडिकल कॉलेज चिकित्सालय के महिला विंग पहुंच जाइए, यहां के हालात देखकर आप सहज ही अंदाजा लगा लेंगे कि पहाड़ के दुर्गम क्षेत्रों में स्थितियां कितनी बदतर हो सकती हैं। दून मेडिकल कॉलेज चिकित्सालय के महिला विंग में मरीज व्यवस्था के मर्ज से जूझ रहे हैं। स्वास्थ्य सेवाएं खुद बीमार हो चली हैं।
मरीजों को बेड तक नहीं उपलब्ध
प्रदेश के सबसे बड़े अस्पतालों में शुमार इस चिकित्सालय में गर्भवती महिलाओं को बेड तक मयस्सर नहीं हैं। अस्पताल पर क्षमता से चार गुना ज्यादा दबाव है। जिस कारण महिलाओं की डिलीवरी अव्यवस्थाओं के बीच होती है। स्वास्थ्य विभाग के अधीन रहते अस्पताल में 111 बेड स्वीकृत थे। लेकिन मरीजों के अत्याधिक दबाव के कारण इससे कई अधिक मरीज भर्ती किए जाते थे। अब यह अस्पताल मेडिकल कॉलेज का हिस्सा है। एमसीआइ के मानकों के अनुसार दून मेडिकल कॉलेज की महिला विंग में 40 बेड होने चाहिए। उसी मुताबिक डॉक्टरों की संख्या निर्धारित है। फौरी तौर पर अस्पताल में किसी तरह 113 बेड एडजस्ट किए गए हैं। लेकिन, रोजाना करीब 150-55 मरीज भर्ती किए जा रहे हैं। इस स्थिति में एक बेड पर दो-दो महिलाएं भी भर्ती हैं। उस पर बेड के लिए भी सिफारिश आ रही है। ऐसा नहीं है कि सरकार व शासन को इस बात का इल्म नहीं। हाकिम भी यह जानते हैं कि कम बेड के कारण मरीज परेशानी में हैं, लेकिन स्थिति बदल नहीं रही। हालत यह कि प्रसव उपरांत महिलाएं नवजात संग कॉरिडोर में फर्श पर अपना ठिकाना तलाश रही हैं। एकाध नहीं कई मरीज फर्श पर चादर डालकर गुजारा कर रहे हैं। जबकि प्रसव उपरांत एक महिला को बहुत ज्यादा देखभाल की जरूरत होती है। गैलरी में भारी भीड़ के चलते जमीन पर लेटे मां और बच्चे को बिल्कुल भी आराम नहीं मिलता।

रेफर करने में भी दिक्कत
पहले दून महिला अस्पताल गंभीर स्थिति में गर्भवती को श्री महंत इंदिरेश अस्पताल रेफर कर देता था। श्री महंत इंदिरेश अस्पताल के साथ एनएचएम के तहत अनुबंध था। जिसके तहत इलाज का खर्च सरकार वहन करती थी। पर मेडिकल कॉलेज बनने के बाद यह व्यवस्था भी भंग हो गई। अब अस्पताल प्रशासन नियमानुसार केवल एम्स ऋषिकेश या पीजीआइ चंडीगढ़ को मरीज रेफर कर सकता है। जिससे दिक्कत और भी बढ़ गई है। न यह दूरी के लिहाज से मुफीद है और न जेब के।
स्टाफ की भी कमी
मानक के अनुसार तीन शिफ्ट में प्रत्येक बेड पर पांच स्टाफ नर्स होनी चाहिये,पर संख्या इससे बहुत कम है। अस्पताल की सात यूनिट में मात्र 21 स्टाफ नर्स तैनात हैं।
निक्कू वार्ड की भी हालत बुरी
अस्पताल में नवजातों की सांस का शायद कोई मोल नहीं। अस्पताल की सिक न्यूबॉर्न केयर यूनिट (एसएनसीयू) में वेंटीलेटर तक की पर्याप्त सुविधा नहीं है। मात्र एक वेंटिलेटर काम कर रहा है। वहीं अस्पताल में 23 में से मात्र 14 बेबी वार्मर काम कर रहे हैं।
अल्ट्रासाउंड के लिए एक माह तक वेटिंग
दावा सुरक्षित मातृत्व का और व्यवस्थाएं ऐसी कि गर्भवती महिलाओं का दर्द बढ़ा रही हैं। प्रदेश के प्रमुख अस्पतालों में शुमार दून महिला अस्पताल में गर्भवती को अल्ट्रासाउंड के लिए ही उन्हें एक माह तक का इंतजार करना पड़ रहा है। जिसका कारण है कि अस्पताल में मात्र एक ही रेडियोलॉजिस्ट तैनात है। जबकि मरीजों का दबाव कई ज्यादा है।