अपने खोये प्राकृतिक सौंदर्य को वापस हासिल कर रहा है गंगोत्री नेशनल पार्क

“2007-2008 में जब से गंगोत्री नेशनल पार्क में पर्यटकों की आवाजाही पर निगरानी रखी गई है तब से पार्क के जीव जंतुओं की प्रजातियों के जीर्णोद्धार में काफी इजाफा देखने को मिला है” ये कहना है उत्तराखंड के चीफ वाइल्ड लाइफ वॉर्डन डीवीएस खाती का।

11,000 फुट की ऊंचाई पर बने औऱ 2390 वर्ग किमी के क्षेत्र में फैले भारत के तीसरे सबसे बड़े राष्ट्रीय पार्क के लिये अच्छी खबर ये रही कि 2007-2008 में जबसे पार्क में आने वाले पर्यटकों की संख्या को पार्क प्रशासन ने 150 प्रतिदिन किया है तब से पार्क के संरक्षण में अधिकारियों को काफी सकारात्मक नतीजे मिले हैं।

गौमुख और जध वैली इस पार्क के दो प्रमु्ख हिस्से हैं और यहां देश विदेश के बेहतरीन और अलग-अलग तरह के वन्य जीव और पेड़ पौधों की प्रजातियां पाई जाती हैं। 2007 से पहले यहां सालाना आने वाले हज़ारों पर्यटकों के पैरों तले इन प्राकृतिक सौंदर्य को रौंदा जाता रहा था। यहां आने वाले लोगों में ट्रैकर्स के अलावा, एक बड़ी तादाद कांवड़ियों की भी रहती थी जो गौमुख से गंगा जल लेने के लिये यहां आते हैं।

न्यूजपोस्ट से बात करते हुए खाती ने बताया कि “वाइल्ड लाइफ इंस्टिट्यूट आदि की मदद से पार्क में लगाये गये करीब 20 कैमरा ट्रैप में हमने कई तरह के दुर्लभ जानवरों की तस्वीरें कैद की हैं। इनमे एक मादा स्नो लेपर्ड अपने तीन शावकों के साथ, भरल, इंडियन ब्राउन बियर, अधाली भेड़ औऱ लिंक्स, प्रमुख रहे हैं। ये अपने आप में एक कीर्तिमान है।”

पार्क में आने वाले पर्यटकों की संख्या पर लगाम लाने के साथ साथ इस इलाके की पर्वत श्रृंखलाओं पर होने वाले ट्रैक की संख्या को भी साल में केवल 12  पर सीमित कर दिया गया। इससे पार्क के संरक्षण में मिली मदद को हर तरफ से वाहवाही मिली है। राज्य के मुख्य सचिव उत्पल कुमार सिंह कहते हैं कि “दुर्लभ ब्लू शीप को अपने राज्य में देखे जाने पर काफी खुशी होती है। इसके साथ साथ मादा स्नो लेपर्ड अपने तीन शावकों के साथ इस बात का सबूत है कि इस इलाके में प्रकृति अपने खोये स्थान को वापस पा रही है।”