मिसालः सुधीर के भलु लगद ने बदली बहुत से लोगों की जिंदगी

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किसी ने खूब कहा है मेहनत, हिम्मत और लगन से कल्पना साकार होती हैं, और ऐसे ही अपनी मेहनत और लगन से लोगों के लिए प्रेरणा बन रहे हैं सुधीर सुंदरियाल।

गढ़वाली शब्द भलु लगद जिसका अंग्रेजी अर्थ है फील गुड,इ स नाम से सुधीर का एक फेसबुक पेज हैं और इसके अलावा वह राज्य में हो रहे पलायन के खिलाफ काम कर रहे हैं।

साल 2014 में इंडिया टीवी न्यूज चैनल की नौकरी छोड़ कर सुधीर और उनकी पत्नी एम्स अस्पताल में अपने आर्गेन डोनेट करके अपने गांव चौबट्टाखाल,पौड़ी वापस आ बसे। 9 जनवरी 2015 को सुधीर ने भलु लगद चेरीटेबल ट्रस्ट बनाया और इसके साथ ही उन्होंने अलग-अलग कामों के माध्यम से लोगों को जागरुक करना शुरु कर दिया।

सुधीर के काम की शुरुआत हुई जलाशय से यानि की पहाड़ में होने वाले बारिश के पानी को इकट्ठा करके उसका इस्तेमाल जरुरी काम के लिए करना।इस जल संरक्षण में सुधीर का साथ बहुत से लोगों ने दिया और इसके माध्यम से दूसरे गांव के लोग भी जागरुक हुए।

चौबट्टाखाल के डबरा गांव में फीलगुड नॉलेज और इंर्फामेशन सेंटर की स्थापना भी सुधीर की एक सराहनीय पहल है। इसके माध्यम से बच्चे और बूढ़े हर किसी को समाज से जुड़े रहने का मौका मिलता है।इस इंर्फॉमेशन सेंटर में लाइब्रेरी, प्रोजेक्टर, कंप्यूटर, अखबार और मैगजीन उपलब्ध होती है, जिसको गांव के लोग आकर पढ़ सकते हैं। इसके अलवा 10 जगहों पर फील गुड संस्था बच्चों के लिए एक्सट्रा क्लासेस का आयोजन भी करते हैं जिसमें बच्चों के अलग-अलग एक्टिविटी कराई जाती है जिससे बच्चों का मानसिक और शारिरिक विकास हो सके।

शिक्षा,कृषि और पर्यावरण तीन ऐसे क्षेत्र हैं जिसपर फील गुड संस्था काम कर रहा है। राज्य में कृषि के क्षेत्र में इस समय फील गुड संस्था के 10-12 मॉडल है जैसे कि सेब की खेती,अखरोट,बड़ी इलायची,कीवी,नींबू आदि की खेती। फील गुड का मानना है कि एक ही नारे से राज्य में पायन को रोका जा सकता है,  ’बंजर खेत आबद करो,पलायन को पीछे छोड़ो।’

सुधीर ने बीते दिनों पान की फसल की पहली खेप तैयार की है, सुधीर अपनी खेप के बारे में कहते है, जो एक बार खाए चौबट्टाखाल का पान वो भूल जाए बाकी सभी पान।”

अपने अनुभव के बारे में बात करते हुए सुधीर ने बताया कि लगभग एक साल पहले मैं गढ़वाल यूनिवर्सिटी ट्रेनिंग के लिए गया था वहां से पान की एक बेल लेकर आये और लगा दिया।आज उस एक बेल से लगभग 32 जगह पान की बेल लगा दी गई है।पान की फसल को नमी की जरुरत होती है और पहाड़ों में नमी की कोई कमी नहीं है इसलिए यहां पान की खेती लाभदायक होगी।

पान की उपलब्धता कम होने की वजह से पहाड़ में पान के एक पत्ते के लिए लोगों को 5 रुपये देना पड़ता हैं और पान की खेती को अगर व्यवसाय के रुप में इत्सेमाल किया जाए तो इससे लोगों को रोज़गार तो मिलेगा ही साथ में पान की जगह उपयोग होने वाले गुटखे की खपत भी कम होगी।

सुधीर से टीम न्यूजपोस्ट की बातचीत में उन्होंने बताया कि, “कृषि के क्षेत्र में हमने अलग-अलग प्रयोग किए हैं और हमारे सभी प्रयोग सफल रहे हैं।उसी कड़ी में हमने पान की खेती की शुरुआत की जिसमें हम अपेक्षा से भी ज्यादा सफलता मिली है।इससे पहले हमने केले की खेती को लेकर लोगों को जागरुक किया था अब हम लोगों को पान की खेती को लेकर जागरुक कर रहे हैं।”

इसके अलावा सुधीर और उनकी पत्नी लोगों के बीच आर्गेन डोनेशन को लेकर भी जागरुक करते हैं।इन दोनों दंपत्ति ने ना केवल राज्य में रिवर्स माइग्रेशन का संदेश पहुंचाया है बल्कि बहुत से लोगों को अपने पैरों पर खड़े होने की प्रेरणा भी दी है।