उत्तराखंड हाई कोर्ट के गंगा में प्रदूषण को लेकर दायर जनहित याचिका

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नैनीताल। गंगा में प्रदूषण को लेकर दायर जनहित याचिका पर हाई कोर्ट नैनीताल की ओर से दिए गए ऐतिहासिक फैसला को फ्रांस के उच्चशिक्षण संस्थाओं के पाठ्यक्रम में शामिल किया गया है।

उत्तराखंड हाई कोर्ट के गंगा में प्रदूषण को लेकर दायर जनहित याचिका पर दिए गया ऐतिहासिक फैसला वैश्विक फलक पर छा रहा है। भले ही उत्तराखंड सरकार इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देकर स्थगनादेश ले आई है पर दुनिया के ताकतवर देशों में शुमार फ्रांस के उच्चशिक्षण संस्थाओं के पाठ्यक्रम में फैसले को शामिल किया गया है। यही नहीं फ्रांस में गंगा की मान्यता व मौजूदा स्थिति पर भी शोधार्थियों की रुचि तेजी से बढ़ रही है।

दरअसल, अधिवक्ता ललित मिगलानी की जनहित याचिका पर वरिष्ठ न्यायाधीश न्यायमूर्ति राजीव शर्मा की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने गंगा के साथ ही ग्लेशियर, पेड़ व पौधों को जीवित व्यक्ति का दर्जा दिया था। पिछले साल दो दिसंबर को खंडपीठ ने 26 बिंदुओं को लेकर फैसला दिया था। गंगा को जीवित व्यक्ति का दर्जा देने संबंधी फैसले को राज्य सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में एसएलपी दायर कर चुनौती दी थी। इस सुप्रीम कोर्ट ने रोक लगा दी थी, जबकि ग्लेशियर व पेड़-पौधों को जीवित व्यक्ति का दर्जा देने वाला आदेश प्रभावी है। अब तक इस आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती नहीं मिली है।

रविवार को फ्रांस की शोधार्थी डेनियल बेरती ने याचिकाकर्ता व अधिवक्ता ललित मिगलानी से मुलाकात कर फैसले के अहम बिंदुओं बारे में जानकारी ली। उन्होंने इसकी पुष्टि किया कि इस विषय को फ्रांस के नेशनल सेंटर फॉर साइंस रिसर्च व सेंट्रल फॉर हिमालयन स्टडीज फ्रांस में अध्ययन के लिए शामिल कर लिया गया है। डेनियल ने गंगा की धार्मिक व सामाजिक मान्यता को लेकर भी तथ्यात्मक जानकारी जुटाई। अधिवक्ता मिगलानी ने इसको उत्तराखंड हाई कोर्ट के साथ ही देश के लिए बड़ी उपलब्धि करार दिया है। साथ ही कहा कि गंगा की स्वच्छता व निर्मलता को लेकर उनकी मुहिम जारी रहेगी।