कुमाऊंनी होली की समृद्ध परंपरा जारी है खड़ी और बैठकी होली का क्रम

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देहरादून। रंग और राग का त्यौहार होली आ गया है। उत्तराखंड की कुमाऊं में खड़ी और बैठी होली के रंग जमने लगे हैं। उत्तराखंड में बैठकी होली का इतिहास गौरवशाली है। साथ ही इसका सांस्कृतिक पहलू भी मजबूत रहा है। यह जरूर है कि समय के साथ होल्यारों ने अपने रंग राग को भी नया स्वरूप दिया है। समय की कमी के कारण अब पहाड़ की होली भी पहले जैसी नहीं रही लेकिन आज भी कुर्मांचल के लोग जहां भी हैं, वह अपनी इस परंपरा को जीवित रखे हुए हैं।

देहरादून के टीएचडीसी कालोनी तथा जनरल महादेव सिंह रोड पर कुर्मांचल क्षेत्र के घरों में होली की धूम प्रारंभ हो गई है। इन क्षेत्रों में युवा होल्यारों की धमक मन को सुकून दे रही है। उत्तराखंड के वित्त मंत्री प्रकाश पंत तथा भाजपा प्रदेश अध्यक्ष अजय भट्ट दोनों कुर्मांचली संस्कृति के प्रमुख स्तम्भों से माने जाते हैं। इनके संरक्षण में पहाड़ में होली की महफिलें इसी रंग में रंगी हैं। यू तो नैनीताल में भी होली अपने पूरे शबाब पर है। बड़ों के साथ बच्चे भी होली के रागों की सुर, लय, ताल छेड़े हुए हैं। इन राग रागनियों से बच्चों, बड़े हो, बूढें हो या युवा सब के सब भाव विभोर हो जाते हैं।

कुर्मांचली होली गीतों पर ब्रज का अच्छा खास प्रभाव है। वही लय, वही ताल, वही स्वर लेकिन बीच-बीच में आंचलिक बोलियों का प्रभाव स्थानीयता से जोड़ने के साथ-साथ मन को काफी प्रभावित करता है।

बैठकी होली के अधिकांश गायक शास्त्रीय संगीत पर आधारित गायन की इस परम्परा को लगातार आगे बढ़ा रहे हैं। युवा गायकों के ऐसे सुर लग रहे हैं कि हर कोई दंग है। भक्ति, श्रृंगार रस की बयार तो इन नए जमाने के होल्यारों से बह रही है। शिवरात्रि के बाद अब ऐसा रंग चढ़ा है कि जैसे होली परवान पर हो। हालांकि नए जमाने के ये युवा होली के जरिए अपनी परम्परा को बचाने का भी जुनून पाले हुए हैं।

कुमाऊं की होली एक माह पहले ही प्रारंभ हो जाती है। जानकार त्रिलोक सिंह जंतवाल बताते हैं कि कुमाऊं में होली पौष के पहले रविवार से शुरू हो जाती है। यहां शास्त्रीय संगीत पर आधारीत होली में अवधी व ब्रज भाषा में गायकों द्वारा प्रस्तुतिकरण किया जाता है। श्री जंतवाल का कहना है कि 16 मात्राओं में गाई जाने वाली इस होली में झिझोरी, राग धमाल, जंगलाकाफी, जैजवंती, खमार, राग दरवारी के अलावा अन्य रागों का समावेश होता है। यू तो कुमाऊं में होली की परम्परा काफी पुरानी है परन्तु नैनीताल में 1997 से युवाओं को इस परम्परा से जोड़ने की शुरुआत हुई हैै। इसके कारण उनका वर्चस्व होलिका गायन में बढ़ा है।

यूं तो हमारी परंपरा और संस्कृति अधिकांश बुजुर्गों के बल पर चल रही है। इसका कारण युवाओं का इस ओर कम आना है लेकिन कुर्मांचल की इस होली में युवाओं का बढ़ना और इनका प्रचार-प्रसार करना स्वागत योग्य कदम है।